छत्तीसगढ़ में स्वतंत्र काकतीय चालुक्य वंश

Swatantra Kaaktiya Chalukya Vansh Chhattisgarh   – पिछले भाग में हमने कवर्धा फणी नागवंश छत्तीसगढ़  के बारे में पढ़ा । जिसमें छत्तीसगढ़ कवर्धा  के फणीनाग वंश की जानकारी प्राप्त की, इसी को आगे बढ़ाते हुए हम आज यहाँ छत्तीसगढ़ के मध्यकालीन इतिहास के काकतीय वंश एवं उसके शासन काल  के बारे में पढेंगे ।

Kaaktiya Vansh Chalukya Vansh Chhattisgarh

काकतीय वंश-Kaaktiya Vansh ( 1324-1968)
 
 

रूद्र प्रताप देव – Rudra Pratap Dev

प्रताप रूद्र देव वारंगल में काकतीय वंश का शासक बना और इन्हें काकतीय वंश का आदि पुरुष कहा जाता है । इनके साम्राज्य के शासनकाल में 1310 ई. में “अलाउद्दीन खिलजी” के सेनापति ” मालिक काफूर” ने आक्रमण किया था ।
इसके बाद 1321 ई. में “गयासुद्दीन तुगलक” एवं “मुहम्मद बिन तुगलक” ने आक्रमण कर रूद्र प्रताप देव को पराजित कर वारंगल को नष्ट किया ।
प्रताप रूद्र देव की मृत्यु के बाद “अन्नमदेव” शासक बना और उसने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए बस्तर (Bastar – Chhattisgarh) छत्तीसगढ़ पर आक्रमण कर “छिन्द्क नागवंशी शासक हरिश्चंद्र देव” को पराजित किया एवं बस्तर क्षेत्र में “काकतीय वंश” की नीव रखी ।
संस्थापक –  राजा “अन्नमदेव”
आदि पुरुष – रूद्र प्रताप देव
राजधानी – मंधोता ( आँध्रप्रदेश तेलंगाना )
शासन काल – 1324-1968 ई.

स्वतंत्र काकतीय वंश – प्रमुख शासक 

1. अन्नमदेव ( 1324-1369 ई. ) – अन्नमदेव  छत्तीसगढ़ में काकतीय वंश के संस्थापक राजा थे, इन्होने छतीसगढ़ बस्तर के छिन्द्क नागवंशी के अंतिम शासक “हरिश्चंद्र देव” को पराजित कर काकतीय वंश की नीव रखी 
 
इन्होने दंतेवाडा के “तरला” नामक गाँव में “दंतेश्वरी देवी” का मंदिर निर्माण करवाया , दंतेश्वरी देवी इनकी कुल देवी थी । 
 
चूँकि रुद्रमा देवी द्वारा इन्हें गोद नहीं लिया गया था इस हेतु इन्हें “चालुक्य” भी कहा जा सकता है क्यूंकि रुद्रमा देवी काकतीय वंश की शासिका थी और इन्होने प्रताप रूद्र देव को ही गोद लिया था 
 
अन्नमदेव ने “भोगवतिपुरी” के स्थान पर मंधोता को राजधानी बनाया । हल्बी जाति के लोग अपनी हल्बी गीतों में “अन्नमदेव” को हल्बी वंश का राजा कहा है 
 
2. हमीरदेव ( 1369-1410 ई. )
3. भौरम देव ( 1410-1468 ई. )
 
4. पुरुषोत्तम देव ( 1468-1534 ई. ) – पुरुषोत्तम देव ने राजधानी “गंधोता” से “बस्तर” को बनाया , इन्होने मंधोता  से  उड़ीसा के जगन्नाथपुरी तक जमीं नापते नापते  यात्रा की । 
 
जिसके कारण यहाँ के शासक ने इन्हें 16 पहियों का रथ दिया एवं उन्हें “रथपति” की उपाधि दी  पुरुषोत्तम देव उड़ीसा से पुनः लौटकर बस्तर में “गोंचा पर्व” की शुरुआत की तथा प्रतिवर्ष रथ यात्रा प्रारम्भ करवाया 
 
5. जयसिंह देव  ( 1534-1558 ई. )
6. नरसिंह देव  ( 1558-1602 ई. )
 
7. प्रताप राज  देव  ( 1602-1625 ई. ) – इन्होने गोलकुंडा के कुतुबशाही वंश के शासक कुली कुतुबशाह को पराजित किया । अहमदनगर के राजा मलिकम्बर ने प्रताप राज देव पर आक्रमण किया एवं उन्हें परास्त किया ( डोंगरगढ़ क्षेत्र के शिवनाथ का दक्षिण क्षेत्र 18 गढ़ों को जीता था । )
 
8. जगदीश राज  ( 1602-1639 ई. ) – इनके शासनकाल में मुसलामानों का आक्रमण हुआ
9. वीर नारायण देव   ( 1639-1654 ई. )
 
10. वीर सिंह देव   ( 1654-1680 ई. ) – इन्होने राजपुर का किला बनवाया, इनके शासन काल में इनका संघर्ष मुस्लिम शासकों से हुआ 
 
11. हरपाल देव   ( 1680-1709 ई. ) – नौरंगपुर के क्षेत्र में विजय अभियान की स्मृति में दंतेश्वरी मंदिर में 1702 ई. में शिलालेख उत्तीर्ण कराया 
 
12. राजपाल देव   ( 1709-1721 ई. ) – राजपाल देव ने प्रौढ़ प्रताप चक्रवर्ती की उपाधि रखी । इसकी दो पत्नियाँ थी – प्रथम बघेल वंश की रानी जिसका पुत्र “दखन सिंह” था 
– द्वितीय चंदेल वंश की रानी जिसका पुत्र “दलपत देव” था 
 
राजपाल देव की मृत्यु के पश्चात् चन्देल वंश की रानी का भाई “चंदेल मामा” इस वंश का शासक बना  
 
13. चंदेल मामा    ( 1721-1731 ई. ) – चंदेल मामा की हत्या कर “दलपत देव” स्वयं शासक बना  
 
14. दलपत देव     ( 1731-1774 ई. ) – दलपत देव के शासन काल में मराठा कालीन सेनापति “निलुपंत” का आक्रमण हुआ (1770 ई. ) जिसमें निलुपंत पराजित हुआ 
 
कुछ समय पश्चात् निलुपंत ने दलपत देव पर पुनः आक्रमण किया जिसमें दलपत देव पराजित हुआ तथा अपनी राजधानी बस्तर के स्थान पर “जगदलपुर” को बनाया 
 
इसके पश्चात् मराठो के द्वारा बस्तर के बंजारा जातियों से व्यापर किया जाता था जिसमें ये नमक एवं कपड़ो का व्यापर किया करते थे 
 
दलपत देव की दो पत्नियाँ थी और दोनों से दो पुत्र थे – बड़ा ” अजमेर सिंह” और छोटा “दरिया देव”। दलपत देव ने अजमेर सिंह को बड़े डोंगर परगना का शासन सौंपा 
 
दलपत देव की मृत्यु के बाद दोनों पुत्रों में शासन के लिए संघर्ष हुआ , बाद में दरिया देव ने बड़े डोंगर परगना पर आक्रमण किया फलस्वरूप दरिया देव पराजित हुआ एवं अजमेर सिंह शासक बने 
 
नोट: दलपत देव ने अपने नाम पर दलपत सागर/झील का निर्माण करवाया 
 
15. अजमेर सिंह  ( 1774-1778 ई. ) – अजमेर सिंह को दरिया देव ने मराठो एवं अंग्रेजों से सहायता लेकर इन्हें पराजित किया अजमेर सिंह को बस्तर क्षेत्र का “क्रान्ति मसीहा” कहा जाता है 
 
अजमेर सिंह के शासन काल में हल्बा विद्रोह हुआ जिसमें हल्बा जाति ने अजमेर सिंह की ओर से दरिया देव का विरोध किया 

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