1857 की क्रांति का परिणाम, स्वरूप और महत्व – यद्यपि 1857 की क्रांति असफल हो गई थी किन्तु इस विद्रोह ने अंग्रेजी निति व प्रशासन में आमूलचूल ( बड़ा परिवर्तन ) परिवर्तन करने के लिए अंग्रेजों को बाध्य होना पड़ा ।
इस परिवर्तन का परिणाम निम्न प्रकार से है :
1. महारानी का घोषणा पत्र
1 नवम्बर 1858 को इलाहाबाद में महारानी का घोषणा पढ़ा गया, जिसमें भारत सरकार की नवींन निति का उल्लेख किया गया था, जिसके अंतर्गत या तहत निम्न परिवर्तन किये गए —
- हड़पनिति त्याग दी जायेगी और नरेशों को दत्तक पुत्र लेने का अधिकार होगा ।
- भविष्य में भारतियों रियासतों का अकारण विलय नहीं किया जायेगा ।
- भारतीय सामाजिक एवं धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा ।
- धर्म, जाति, लिंग एवं क्षेत्र भेद के बिना नौकरियों का द्वार सभी के लिए खोला जाएगा ।
- सेना का पुनर्गठन किया जाएगा तथा सेना में भारतियों तथा यूरोपियों का अनुपात 2:1 किया जाएगा । किन्तु महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेजों की ही नियुक्ति की जायेगी ।
- भारत परिषद अधिनियम 1861 के द्वारा विधायका का गठन कर भारतीयों को शामिल किया जाएगा ।
इन सब घोषणा के साथ हिन्दू और मुस्लिम को बांटने और फुट दालों शासन करो की निति अपनाई गयी जिससे भारत में सांप्रदायिकता की स्थिति उत्पन्न हुई ।
1857 की क्रांति का परिणाम, स्वरूप और महत्व
2. कम्पनी शासन का अंत
- ब्रिटिश संसद ने 1858 के अधिनियम के द्वारा कम्पनी के शासन का अंत कर दिया गया और भारत का प्रशासन ब्रिटिश सरकार ने महारानी के नाम पर अपने हाथों में ले लिया ।
- 1858 के अधिनियम के तहत भारत सचिव की नियुक्ति की गई तथा उसके सहयोग के लिए 15 सदस्य भारत परिषद की स्थापना की गई ।
- इस अधिनियम के तहत गवर्नर जनरल को वायसराय का दर्जा दिया गया, और उसे सीधे सम्राट के प्रति उत्तरदायी बनाया गया ।
- कैनिंग प्रथम वायसराय बने ।
क्रांति का स्वरूप
1857 के विद्रोह के स्वरुप को लेकर विद्वानों के बिच बहुत मतभेद या भिन्नता देखने को मिलता है , विभिन्न विद्वानों के मत निम्नानुसार है :
- यह एक सैनिक विद्रोह मात्र था इसके अलावा और कुछ भी नहीं — सिले , पर्सिवाल स्पीयर ।
- यह धर्मान्धों ईसाईयों के विरुद्ध विद्रोह था — एल. राज. रीज ।
- ये सभ्यता एवं बर्बरता के बीच एक युद्ध था — टी. आर. होन्स ।
- ये अंग्रेजो के विरुद्ध हिन्दू मुस्लिम का षड्यंत्र था — आऊट्राम, टेलर, हंटर ।
- ये राष्ट्रीय आन्दोलन था — बेंजामिन डिजरोयली ।
- यह एक महान राष्ट्रीय विद्रोह था — अशोक मेहता ( पुस्तक – ग्रेट रिबेलियन )।
- प्रथम स्वतंत्रता संग्राम — वीर सावरकर ।
- पुरातन व्यवस्था का अपनी पुनर्स्थापना के लिए अंतिम प्रयास था — ताराचंद ।
- यह एक जनक्रांति थी — रामविलास शर्मा
- तथाकथित राष्ट्रीय संग्राम न तो प्रथम था ना ही राष्ट्रीय था और ना ही स्वतंत्रता संग्राम था — आर.सी. मजुमदार ।
- 1857 का विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह था जिसका तात्कालिक कारण केवल चर्बी वाला कारतूस था — पी. रोबर्टसन
- ये न तो केवल सैनिक विद्रोह था न तो स्वतंत्रता संग्राम, यह सैनिक विद्रोह से कुछ अधिक और राष्ट्रिय स्वतंत्रता संग्राम से कुछ कम था — वाल्कत स्टेंस ।
क्रांति का महत्व
- 1857 के विद्रोह की असफलता ने भारतियों को इस तथ्य से परिचित कराया की विद्रोहों में मात्र सैन्य बल के प्रयोग से सफलता नहीं पाई जा सकती । बल्कि समाज के सभी वर्गों का सहयोग व समर्थन और राष्ट्रीय भावना भी आवश्यक है ।
- इस विद्रोह ने भारतीयों में विदेशी सत्ता के विरुद्ध एकता व राष्ट्रीयता की भावना का बीज बोया ।
- विद्रोह के बाद भारत सरकार के ढांचे व नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए ।
- संवैधानिक सुधारों का सूत्रपात हुआ, तथा भारतियों को धीरे धीरे अपने देश के शासन में भाग लेने का अवसर मिला ।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- ग़ालिब ने 1857 की क्रांति/विद्रोह को देखा था ।
- एचिसन ने 1857 की क्रांति के सम्बद्ध में कहा ” इस मिसाल में हम हिन्दू मुस्लिम को भिड़ा नहीं पाए ” ।
- जॉन लोरेन्स ने कहा ” यदि विद्रोहियों में एक भी योग्य नेता होता तो हम सदा के लिए विद्रोह हार जाते ” ।
- नाना साहब के सेनापति तात्या टोपे थे ।
- अजीम उल्लाह्खान नाना साहब के सलाहकार थे ।
कुछ प्रमुख पुस्तकें
पुस्तकें नाम
द फर्स्ट इंडियन वॉर ऑफ़ इन्डेपेंड़ेंस – बी. डी. सावरकर
द ग्रेट रिबेलियन – अशोक मेहता
द सिपॉय म्युटिनी एंड रिवोल्ट ऑफ़ 1857 – आर. सी. मजुमदार
द कॉजेस ऑफ़ इंडियन रिवोट – सर सैय्यद अहमद खां
- भारत सरकार ने सरकारी इतिहासकार के रूप में सुरेन्द्र नाथ सेन को विद्रोहों का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया था ।
- फैजाबाद के मौलवी अहमद उल्ला ने अंग्रेजों के विरुद्ध फ़तवा जारी किया व जिहाद का नारा दिया ।
- राजस्थान कोटा में ब्रिटिश विरोधियों का प्रमुख केंद्र था जहाँ जनदयाल व हरदयाल ने विद्रोह का नेतृत्त्व किया ।
- बिहार के कुंवर सिंह के मृत्यु के बाद उनके भाई अमरसिंह ने विद्रोह को नेतृत्त्व प्रदान किया ।
- उड़ीसा में संबलपुर के राजपुर सुरेन्द्र साय विद्रोह के नेता बने ।