छत्तीसगढ़ बस्तर के छिंदक नागवंशी : पिछले भाग में हमने मैकाल सोम वंश और सिरपुर बाण वंश (पांडू वंश) के बारे में पढ़ा । जिसमें छत्तीसगढ़ के राजवंश की जानकारी प्राप्त की, इसी को आगे बढ़ाते हुए हम आज यहाँ छत्तीसगढ़ के मध्यकालीन इतिहास के बस्तर छिन्द्क नागवंशी के बारे में पढेंगे ।
छत्तीसगढ़ बस्तर के छिंदक नागवंशी
बस्तर का छिन्द्क नागवंशी – 1023 ई. – 1324 ई.
मध्यकाल में बस्तर को चक्रकोट , चक्रकोट्टा एवं भ्रमरकोट के नाम से जाना जाता था । छिन्द्क वंश का शासन क्षेत्र चक्रकोट या भ्रमरकोट मण्डल था । जिसमें चक्रकोट का चिन्ह सर्प एवं शासक व्याघ्र तथा भ्रमरकोट का चिन्ह ऐरावत, कमल, करली था ।
छिन्द्क नागवंशियों का गोत्र कश्यप था, इनकी आरम्भिक राजधानी “भोगवती पूरी” थी जो दंतेवाडा के भो ग्राम स्थान को माना जाता है जिसकी जानकारी 28 ताम्रपत्रों एवं शिलालेख से होती है ।
इस वंश के शासकों ने संस्कृत एवं तेलुगु भाषा का प्रयोग किया जिसमें संस्कृत इन्द्रावती के उत्तर भाग एवं तेलुगु भाषा के ताम्रपत्र अभिलेख इन्द्रावती के दक्षिण भाग से प्राप्त किये गए ।
नोट : इस वंश के शासक भोगवती पुरेश्वर की उपाधि धारण किये थे ।
छिन्दक नागवंशी के प्रमुख शासक
1. नृपतिभूषण : नृपतिभूषण इस वंश के संस्थापक राजा है, अन्य लेखो में इनका नाम “क्षिति-भूषण” भी प्राप्त होता है । इनका उल्लेख ऐर्राकोटा अभिलेख तथा तेलुगु शिलालेख में मिलता है ।
2. धारावर्ष ( जगदेव-भूषण ): धारावर्ष के सामंत चंद्रादित्य ने बारसूर में एक तालाब का उत्खनन कराया एवं बारसूर क्षेत्र में ही चंद्रादित्य मन्दिर या चंद्रादित्तेश्वर ( शिव मन्दिर ) एवं मामा भांजा मन्दिर ( गणेश मन्दिर ) बनवाया, एवं इन्होने दंतेवाडा ( वर्तमान – नारायणपुर ) में विशाल गणेश प्रतिमा का निर्माण कराया ।
धारवर्ष की मृत्यु के पश्चात् उनके सम्बन्धी “मधुरान्त्क देव” एवं बड़े पुत्र “सोमेश्वर देव” के मध्य सत्ता हस्तांतरण की स्थिति उत्पन्न हुई ।
3. मधुरान्त्क देव: मधुरान्त्क देव भ्रमरकोट का मांडलिक ( मंडल अधिकारी ) था , कुछ ही समय के लिए इन्होने शासन किया । इनके सम्बन्ध में जानकारी जगदलपुर से प्राप्त एक अभिलेख से होती है, जिसमें इनके द्वारा भ्रमर कोट मंडल के एक ग्राम “राजपुर” को दान में दिए जाने का उल्लेख है।
4. सोमेश्वर देव: ये “धारावर्ष के बड़े पुत्र थे, इन्होने राज्भुष्ण की उपाधि धारण की । सोमेश्वर देव ने चालुक्य शासकों से गठबंधन किया तथा मधुरान्त्क ने चोल शासकों से गठबंधन किया एवं इनके मध्य युद्ध हुआ ।
इस युद्ध में सोमेश्वर देव ने मधुरान्तक को पराजित कर “भोगवती पुरेश्वर” की उपाधि धारण की । सोमेश्वर देव की जानकारी कुरुसपाल अभिलेख तथा समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख से प्राप्त होती है ।
कल्चुरी वंश के रतनपुर शासक “पृथ्वीदेव I” को तथा सिरपुर के नलवंशी शासक एवं पान्डु वंश के शासक को पराजित कर 6 लाख 96 हजार ग्रामों को अपने अधिकार में लिया।
इसके अतिरिक्त इन्होने उत्कल के सोमवंशीय अंतिम शासक उद्योग केसरी को पराजित किया। सोमेश्वर देव पर कलचुरी वंश के शासक ” जाजल्यदेव I” ने आक्रमण किया तथ इनके सेना मंत्री एवं रानी को बंदी बना लिया परन्तु सोमेश्वर देव की माता “गुंडमहादेवी” के आग्रह करने पर उन्हें छोड़ दिया गया।
इसके सम्बन्ध में जानकारी गुंडम महादेवी के शिलालेख से प्राप्त होती है। सोमेश्वर देव के बाद “कन्हार देव” ने शासन किया, इसका उल्लेख कुरुसपाल अभिलेख एवं राजपुर अभिलेख से प्राप्त होती है ।
5. हरिश्चंद्र देव: हरिश्चंद्र देव इस वंश के अंतिम शासक थे, इसकी जानकारी तेमरा/टेमरा अभिलेख से प्राप्त होती है जिसमें सती प्रथा का उल्लेख या प्रमाण मिलता है ।
हरिश्चंद्र देव को काकतीय वंश के शासक ” अन्नमदेव” ने पराजित किया एवं पुरे शासन को अपने अधिकार में ले लिया। हरिश्चंद्रदेव की पुत्री “चमेली देवी” का युद्ध अन्नमदेव से हुआ ।
नोट: चमेली देवी के सन्दर्भ में उनकी वीरता के कारण बस्तर क्षेत्र में गाथा गायन किया जाता है ।
छिन्द्क नागवंशी के प्रमुख अभिलेख
- ऐर्राकोटा अभिलेख – नृपतिभूषण
- जगदलपुर अभिलेख – मधुरान्त्क देव का उल्लेख
- कुरुसपाल अभिलेख – सोमेश्वर देव का उल्लेख
- तेमरा/टेमरा अभिलेख – हरिश्चंद्र देव का उल्लेख
- राजपुर अभिलेख – कन्हार देव का उल्लेख
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