छत्तीसगढ़ में मौर्य वंश, सातवाहन, वकाटक एवं गुप्त वंश – हमारे भारत के इतिहास में जो भी घटित हुआ उसमें छत्तीसगढ़ का भी योगदान है । मौर्य काल से आधुनिक इतिहास तक, यहाँ तक की रामायण काल में भी छत्तीसगढ़ को जाना जाता था , उस समय दक्षिण कोशल के नाम से जान जाता था ।
छत्तीसगढ़ में मौर्य वंश, सातवाहन, वकाटक एवं गुप्त वंश
महाजनपद काल , बौद्ध एवं जैन धर्म काल
600 ई.पू. – 322 ई.पू.
बौद्ध धर्म काल – बौद्ध ग्रन्थ “दीपदान” में छत्तीसगढ़ का उल्लेख प्राप्त होता है। अवदान शतक के अनुसार गौतम बुद्ध ने सिरपुर की यात्रा की थी । नागार्जुन (बौद्ध भिक्षु ) सिरपुर विश्व विद्यालय के कुलपति थे ।
जैन धर्म काल
- ऋषभ देव – जानकारी गूंजी / दमउदरहा ( सक्ति – जांजगीर चाम्पा )
- पार्श्वनाथ – नगपुरा (दुर्ग )
- महावीर स्वामी – आरंग ( रायपुर )
नोट : चेदी महाजनपद के अंतर्गत दक्षिण कोसल ( छत्तीसगढ़ ) को एक जनपद बनाया गया था एवं इसकी राजधानी शक्तिमती थी तथा यह क्षेत्र बुन्देलखण्ड का हिस्सा था ।
मौर्य वंश काल – 322 ई.पू. – 185 ई.पू.
ठठारी अकलतरा ( जांजगीर चाम्पा ) : यहाँ से मौर्य कालीन सिक्के की प्राप्ति हुई है , यह पंचमार्क बनाने वाली आहत सिक्के है तथा बिलासपुर एवं रायगढ़ के बारगांव से भी मिली है । आहत मुद्राएँ तारापुर एवं उडेला ( रायपुर ) से प्राप्त हुए है ।
नोट : प्राचीन छत्तीसगढ़ का उत्तरी भाग मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित थे जिसकी पुष्टि सम्राट अशोक के कलिंग अभिलेख से होती है ।
सातवाहन वंश काल – 72 ई – 200 ई.
सातवाहन वंश की जानकारी का मुख्य स्रोत “किकारी” का काष्ठ स्तम्भ है जो जांजगीर चाम्पा में है ।
गूंजी का शिलालेख – यहाँ से वगदत्तश्री की जानकारी प्राप्त होती है ।
सातवाहन कालीन मुद्रा (स्वर्ण ) चाकरबेडा, मल्हार (बिलासपुर) जिले से प्राप्त हुई है ।
सातवाहन शासकों ने बौद्ध भिक्षु नागार्जुन के लिए 5 मंजिला संघाराम सिंहासन बनाया था ।
बूढीखार से सातवाहन कालीन मिटटी के मुहर प्राप्त हुए है इसमें वेदश्री लिखा हुआ है ।
कुषाण वंशीय स्त्रोत
कुषाण वंश के प्रमाण तेलिकोट खरसिया रायगढ़ से कनिष्क के तथा बिलासपुर जिले के कुछ स्थान से साक्ष्य प्राप्त हुए है ।
नोट : तेलिकोट में सिक्के की खोज पुरातात्विक विभाग के D.K. Shah के द्वारा खोजा गया है ।
मेघ वंश – 100 ई. – 200 ई.
छत्तीसगढ़ में मेघ वंश शासक शिवमेघ एवं यमेघ के सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त होती है ।
वकाटक वंश – 300 ई. – 400 ई.
प्रमुख शासक – महेंद्र सेन , रूद्र सेन , प्रवर सेन , नरेंद्र सेन , पृथ्वी सेन , हरिसेन ।
राजधानी – नंदीवर्धन ( नागपुर )
समकालीन वंश – गुप्त एवं नल वंश
नोट : जब वकाटक वंश नष्ट होने को था तब गुलाम वंश ने शासन किया और गुलाम वंश को समाप्त कर गुप्त शासकों ने गुप्त वंश की नीवं रखी ।
गुप्त वंश – 319 ई. – 500 ई.
समुद्रगुप्त – महासमुंद के कोपरा नामक ग्राम से समुद्रगुप्त की पत्नी रूपा देवी के साक्ष्य प्राप्त होते है । समुद्रगुप्त ने दक्षिण कोसल एवं महाकांतर (बस्तर ) को विजय करने के पश्चात् अपने साम्राज्य में ब्रह्म मोक्ष निति के तहत सम्मिलित नहीं किया एवं इन्हें करद राज्य बनाकर छोड़ दिया ।
रामगुप्त – इसके सिक्के दुर्ग जिले के बानबरद से प्राप्त होता है ।
चन्द्रगुप्त II –चन्द्रगुप्त II की बेटी प्रभावती का विवाह वकाटक शासक रुद्रसेन से हुआ । चन्द्रगुप्त II का धनुर्धारी सिक्का आरंग रायपुर से प्राप्त हुआ ।
कुमारगुप्त –कुमारगुप्त का रत्न जड़ित “मयूर” सिक्का आरंग एवं पिटाईवल्ड रायपुर से प्राप्त हुआ ।
भानुगुप्त –भानुगुप्त के एरन अभिलेख ( 510 ई. ) में शरभपुरीय राजा शरभराज का वर्णन है ।
गुप्तकालीन स्थल –तालागांव का विष्णु मन्दिर, बरमकेला रायगढ़ केवतीन मन्दिर , गुप्तकालीन मन्दिर नागर शैली तथा लाल इंटों से बने थे ।
हम अगले भाग में छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय राजवंश के बारे में पढेंगे ।