Brahman, Aaranyak Sahitya Upanishads History: इसके पहले भाग में हमने सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेद के बारे में पढ़ा और आज हम इस अध्याय में ब्राह्मण , आरण्यक साहित्य या ग्रन्थ और उपनिषद के बारे में पढेंगे ।
ब्राह्मण ग्रन्थ – Brahman Granth
ये वेदों के गद्य भाग है, जिसके द्वारा वेदों को समझने में सहयता मिलती है। यज्ञ और कर्मकांड के विधान एवं उसकी क्रियाओं को भलीभांति समझने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थ की रचना की गई है। ब्राह्मण ग्रंथों में “राजा परीक्षित” के बाद एवं “बिम्बसार” के पहले की घटना का वर्णन मिलता है ।
प्रत्येक वेद के अलग अलग ब्राह्मण है ।
- ऋग्वेद – ऐतरेय एवं कौषीतकी ब्राह्मण
- सामवेद – पंचविश (तांड्य ), षडविश एवं जैमिनी
- यजुर्वेद – शतपथ, तैतरीय
- अथर्वेद – गोपंथ
- ऐतरेय ब्राह्मण में ” राज्याभिषेक” के नियम दिए गए है ।
- ऐतरेय ब्राह्मण में ही “राज की उत्पत्ति” का सिधांत भी दिया गया है ।
- शतपथ ब्राह्मण सबसे “प्राचीन” व “वृहद् ब्राह्मण” है, इन्हें लघु वेद भी कहा जाता है ।
- पुनर्जन्म का उल्लेख , कृषि सम्बन्धी क्रियाओं का उल्लेख भी शतपथ ब्राह्मण में मिलता है ।
- शतपथ ब्राह्मण में ही स्त्री को “अर्धांगिनी” कहा गया है ।
Brahman, Aaranyak Sahitya Upanishads History
आरण्यक साहित्य – Aaranyak Sahitya
- आरण्यक शब्द का अर्थ है – अरण्य अर्थात वन में लिखा जाने वाला ग्रन्थ ।
- यह मुख्यतः वन में रहने वाले सन्यासी एवं छात्रों के लिए लिखी गई है ।
- यह एक ऐसी रचना है जिसमें विभिन्न दार्शनिक, आध्यात्मिक व रहस्यात्मक विषयों का वर्णन किया गया है ।
- इसे रहस्य भी कहा जाता है, आरण्यक की संख्यां 7 है ।
- अथर्वेद को छोड़कर सभी वेदों के आरण्यक है ।
उपनिषद – Upanishads
उपनिषद शब्द उप + नि + षद से बना है । उप का अर्थ – गुरु के समीप , नि का अर्थ – शिष्य और षद का अर्थ – बैठना , अर्थात गुरु के समीप बैठकर शिष्य जिससे ज्ञान की प्राप्ति करता है वह उपनिषद होता है । ये आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत है।
सभी वेदों के अपने अपने उपनिषद है ।
- ऋग्वेद – ऐतरेय एवं कौषीतकी
- सामवेद – केन , छान्दोंग्य
- यजुर्वेद – वृहदारण्यक, श्वेताश्वर, कठ, ईश
- अथर्वेद – मुण्डक, माण्डुक्य , प्रश्न
उपनिषद की विषयवस्तु ” दर्शन” है । इसमें आत्मा-परमात्मा, जीवन-मरन, मोक्ष आदि की अवधारणा मिलती है ।
वैदिक साहित्य का अंतिम भाग होने के कारण “उपनिषदों को वेदांत” भी कहा जाता है । उपनिषदों की संख्यां 108 है ।
- छान्दोंग्य एवं वृहदारण्यक गद्य रूप में लिखा गया है ।
- कठ एवं श्वेताश्वर पद्य रूप में लिखा गया है ।
- छान्दोंग्य उपनिषद में “देवकी पुत्र कृष्ण” का प्रथम उल्लेख मिलता है ।
- वृहदारण्यक उपनिषद में “गार्गी – याज्ञवल्क्य” संवाद का वर्णन है ।
- “यमनचिकेता” संवाद कठ उपनिषद में है , और तीनों आश्रमों का उल्लेख छान्दोंग्य उपनिषद में है ।
- पुनर्जन्म का पहला उल्लेख वृहदारण्यक उपनिषद में मिलता है ।
- “अतिथि देव भवः” , “सदा सत्य बोलो” का उल्लेख तैतरीय उपनिषद में मिलता है ।
- भारत का आदर्श वाक्य “सत्यमेव जयते” मुण्डक उपनिषद से लिया गया है ।
- मुण्डक उपनिषद में यज्ञ की तुलना टूटी हुई नाव से की गई है ।
इसके बाद हम अगले भाग में ” वेदांग, उपवेद, पुराण, मनु स्मृति ग्रंथ और साहित्य ” के बारे में पढेंगे ।