उत्तर वैदिक काल – राजनितिक जीवन
भारतीय इतिहास का यह काल जिसमें सामवेद, यजुर्वेद, अथर्वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, अरण्यक, उपनिषद की रचना हुई “उत्तर वैदिक काल” कहलाता है ।
भारतीय इतिहास का यह काल जिसमें सामवेद, यजुर्वेद, अथर्वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, अरण्यक, उपनिषद की रचना हुई “उत्तर वैदिक काल” कहलाता है ।
राजा का पद वंशानुगत हो गया था फिर भी उसे असीमित अधिकार प्राप्त नहीं थे, क्योंकि उसे कबीलायी संगठन से सलाह लेनी पड़ती थी । “राजा पर नियंत्रण का कार्य सभा एवं समिति नामक संस्था करती थी ।” ऋग्वेद में विदथ नामक संस्था का भी उल्लेख मिलता है जो की आर्यों की प्राचीनतम संस्था है ।
ऋग्वैदिक काल में संयुक्त परिवार की अवधारणा प्रचलित थी, पुत्र का जन्म हर्ष का विषय होता था, जबकि कन्या का जन्म न तो हर्ष का विषय होता था ना ही दुःख का ।
ऋग्वैदिक आर्यों का जीवन अस्थायी था, अतः उनके जीवन में कृषि की अपेक्षा पशुपालन का अधिक महत्व था ।
आर्य भारत में सर्वप्रथम पंजाब व अफगानिस्तान के क्षेत्र के आसपास बसे । इस क्षेत्र को सप्तसैन्धव प्रदेश कहा गया, जिसका अर्थ है सात नदियों का समूह ।
ऋग्वैदिक काल में धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषता प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण कर उसकी उपासना करना था ।