मोन्टेग्यु घोषणा – अगस्त घोषणा

मोन्टेग्यु घोषणा - अगस्त घोषणा
20 अगस्त 1917 में भारत सचिव मोन्टेग्यु ने सुधारों की घोषणा की जिसमें कहा गया की भारत में ब्रिटिश शासन का लक्ष्य स्वशासित संस्थाओं का क्रमिक विकास है। जिससे ब्रिटिश शासन एक अभिन्न अंग के रूप में क्रमशः एक उत्तरदायी शासन की स्थापना कर सके। इसे अगस्त घोषणा के नाम से भी जाना जाता है।

घोषणा का उद्देश्य

  • इस घोषणा का उद्देश्य प्रथम विश्व युद्ध में भारतियों का सहयोग पाना था ।
  • 1918 में भारत सचिव मोन्टेग्यु तथा वायसराय चेम्सफोर्ड ने सुधारों की अपनी योजना प्रस्तुत की और यही रिपोर्ट 1919 के संवैधानिक सुधारों का आधार बना।

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होमरूल (गृहशासन) लीग – तिलक व ऐनी बेसेंट

होमरूल (गृहशासन) लीग - तिलक व ऐनी बेसेंट
1914 में तिलक जेल से रिहा हुए और उन्होंने पाया की नरम पंथियों की नेतृत्त्व में कांग्रेस एक निष्क्रिय संगठन बन चुकी थी, ऐसी स्थिति में तिलक और ऐनी बेसेंट ने होमरूल लीग आन्दोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया। यह आन्दोलन आयरलैंड के होमरूल आन्दोलन से प्रभावित था।
तिलक व ऐनी बेसेंट ने अपने अपने कार्य क्षेत्रों को बांटकर यह आन्दोलन प्रारम्भ किया।

तिलक का होमरूल – Home Rule of Tilak

तिलक ने अप्रैल 1916 में बेलगाँव में हुए प्रांतीय सम्मेलन में इंडियन होमरूल लीग की स्थापना की। इसके प्रथम अध्यक्ष ” जोसेफ वैपटिस्टा” थे, अन्य सदस्य एन.सी. केलकर थे 
 
इस आन्दोलन का कार्यक्षेत्र कर्नाटक, महारष्ट्र (बम्बई को छोड़कर), मध्य प्रान्त व बरार (वर्तमान में महाराष्ट्र में है) । 
पत्रिका – केसरी (मराठी भाषा), मराठा (अंग्रेजी भाषा)
नारा – “स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मै इसे लेकर रहूँगा”
 
 

ऐनी बेसेंट का होमरूल – Home Rule of Annie Besent

होमरूल आन्दोलन की योजना सबसे पहले ऐनी बेसेंट ने 1914-15 में प्रस्तुत की थी , ऐनी बेसेंट ने सितम्बर 1916 में मद्रास के अडयार में All India Home Rule League की स्थापना की
 
इस आन्दोलन के प्रथम अध्यक्ष “अरुंडेल” थे, अन्य सदस्य एस. सुब्रमण्यम अय्यर थे। (CGPSC IMP)
 
इस आन्दोलन का कार्यक्षेत्र तिलक के कार्यक्षेत्रों को छोड़कर शेष भारत व बम्बई था
 
पत्रिका – New India, Common Will (ऐनी बेसेंट)
उद्देश्य – दोनों होमरूल लीग की मांग डोमेनियन स्टेटस के तहत स्वशासन का मांग करना था
 

लखनऊ समझौता व हिन्दू महासभा

लखनऊ समझौता व हिन्दू महासभा

हिन्दू महासभा

वर्ष – 1915
संस्थापक – मदन मोहन मालवी
स्थान – हरिद्वार
उद्देश्य – आरम्भिक दिनों में शुद्धी संगठन इसके मुख्य उद्देश्य थे। हिन्दुओ को आत्मरक्षा के लिए संगठित करना भी इसका मुख्य उद्देश्य था ।
विशेष – भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की मुसलमानों को प्रसन्न करने की निति से दुखी होकर सावरकर ( बिनायक दामोदर सावरकर ) ने “हिन्दू राष्ट्र” का नारा दिया । 1938 में सावरकर इसके प्रमुख बने। ( CGPSC Exam Imp )

लखनऊ समझौता – 1916

1914 में तिलक जेल से रिहा हुए और 1915 में नरम पंथी नेता गोपाल कृष्ण गोखले व फिरोजशाह मेहता का निधन हो गया था। ऐसी स्थितियों में ऐनी बेसेंट के प्रयासों से गरम पंथियों का कांग्रेस में पुनः वापसी हुई । (CGPSC Imp)
अध्यक्ष – कांग्रेस के 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अम्बिका चरण मजुमदार ने की थी। 1916 में लीग का अधिवेशन भी लखनऊ में हुआ था। दिसम्बर 1916 में तिलक तथा जिन्ना के प्रयासों से कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के मध्य भी एक समझौता हुआ।
समझौता की मुख्य बातें 
  • कांग्रेस ने मुस्लिमों के पृथक निर्वाचन प्रणाली को स्वीकारा, विभिन्न प्रान्तों में मुसलमानों के लिए उनके जनसंख्याँ के अनुपात में या उससे अधिक संख्यां में विधायिका में आरक्षण को स्वीकार गया।
  • केन्द्रीय व्यवस्थापिका में भी 1/3 भाग पर मुस्लिम प्रतिनिधियों के आरक्षण को स्वीकारा गया।

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प्रथम विश्वयुद्ध व कामागाटामारू प्रकरण

प्रथम विश्वयुद्ध व कामगाटामारू प्रकरण

प्रथम विश्वयुद्ध 1914

अंग्रेजो ने प्रथम विश्वयुद्ध में स्वशासन का प्रलोभन देकर भारतियों को युद्ध में सम्मिलित होने के लिए राजी कर लिया। युद्ध में एक तरफ मित्र राष्ट्र जिसमें इंग्लैंड, फ़्रांस, रूस आदि थे, जबकि युद्ध में दूसरी तरफ जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया, तुर्की आदि शामिल थे ।
तात्कालिक कारण – आस्ट्रिया के राजकुमार “आर्कड्युक फर्डीनेंट” की सिराजेवा में हत्या हुई थी ।
समाप्ति – 1919 में वर्साय ( पोलैंड की राजधानी ) की संधि से प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति हुई । (CGPSC IMP)

कामागाटामारू प्रकरण 1914

कामागाटामारू प्रकरण कनाडा में भारतियों के प्रवेश से सम्बन्धित एक विवाद था। कनाडा सरकार ने ऐसे भारतियों को अपने यहाँ प्रवेश वर्जित कर दिया था, जो सीधे भारत से नहीं आते।
 
भारतीय मूल के व्यापारी “गुरुदत्त सिंह” या गुरदीप सिंह ने कामागाटामारू नामक एक जहाज को किराये पर लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया के लगभग 376 यात्रियों को लेकर “बैंकुवर” की ओर रवाना हुए, ताकि वे लोग वहां जाकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सके और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन सके 
 
कामागाटामारू जहाज के बैंकुवर तट पर पहुँचने से पहले ही कनाडा सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया, बैंकुवर तट पर पुलिस की घेराबंदी से यात्री जहाज से उतर नहीं 
 

दिल्ली दरबार व ग़दर आन्दोलन

दिल्ली दरबार व ग़दर आन्दोलन
दिसम्बर 1911 में ब्रिटिश सम्राट जोर्ज V (पंचम) तथा रानी मैरी के स्वागत के लिए उनके आगमन पर दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया ।
वायसराय – लार्ड हार्डिंग
घोषणाएं
  • बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया ।
  • 1911 में कलकत्ता की जगह दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। जबकि 1912 में दिल्ली राजधानी बनी ।
  • बंगाल विभाजन रद्द करने के पश्चात बिहार व ओड़िसा को 1912 में बंगाल से अलग कर दिया गया ।
  • असम में सिलहट को मिलाकर एक नया पृथक प्रान्त बनाया गया ।
नोट : ब्रिटिश औपनिवेशिककाल में तिन बार दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया ।
 
 

प्रथम दिल्ली दरबार 

 
वर्ष – 1877
वायसराय – लार्ड लिटन
विशेष – इस दरबार में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया । उन्हें केसर-ऐ-हिन्द की उपाधि दी गई । इसी समय दक्षिण भारत में भीषण आकाल पड़ा था, इसके बावजूद लार्ड लिटन द्वारा इस दिल्ली दरबार के आयोजन में बहुत अधिक धन की बर्बादी की गई।

द्वितीय दिल्ली दरबार 

 
वर्ष – 1903
वायसराय – लार्ड कर्जन
विशेष – इसके अंतर्गत इंग्लैंड के सम्राट एडवर्ड VII की ताजपोशी की घोषणा की गई।

तृतीय दिल्ली दरबार 

 
वर्ष – 1911
वायसराय – लार्ड हार्डिंग
विशेष – जोर्ज V (पंचम) व रानी मैरी का आगमन।

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कांग्रेस का कलकत्ता व सूरत अधिवेशन

कांग्रेस का कलकत्ता व सूरत अधिवेशन

कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन-1906

विवाद – 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर उदारवादी व गरम पंथी के मध्य विवाद उत्पन्न हो गया था।
विवाद का अंत – विवाद का अंत कांग्रेस के वयोवृद्ध व्यक्ति नरम पंथी “दादाभाई नैरोजी” को अध्यक्ष बनाकर समाप्त किया गया ।
विशेष – राष्ट्रिय कांग्रेस के इस अधिवेशन में दादाभाई नैरोजी ने पहली बार कांग्रेस के मंच पर “स्वराज” शब्द का प्रयोग किया था ।  दादाभाई नैरोजी ने 1892 में ब्रिटिश संसद के सदस्य के रूप में लिबरल पार्टी में चुने गए थे साथ ही साथ इन्होने यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन में भी काम किया था ।

कांग्रेस का सुरत अधिवेशन-1907 ( कांग्रेस में फुट )

मतभेद का मूल कारण  – मूल मतभेद स्वराज प्राप्ति के तरीको पर था, नरम दल के नेता 1906 में संघर्ष के लिए स्वराज, स्वदेशी बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा सम्बन्धी प्रस्ताव आदि को क्रियान्वित नहीं करना चाह रहे थे। वे क्रमिक सुधारों के पक्षधर थे तथा बहिष्कार के विरुद्ध थे