सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन, शिल्प, मोहरें तथा लिपि

सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन, शिल्प, मोहरें तथा लिपि
सिन्धु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, इस सभ्यता के लोग आर्थिक दृष्टि से समृद्ध थे । इसका मुख्य कारण सिंचित कृषि, विकसित व्यापार एवं उद्योग था ।

कृषि

सिन्धुघाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था । गेहूं, जौ मुख्य खाद्य फसल थे । इसके अतिरिक्त तिल, मटर, सरसों आदि भी उगाये जाते थे ।
संभवतः चांवल नहीं उगाया जाता था, किन्तु रंगपुर तथा लोथल से धान की भुंसी के साक्ष्य मिले है । सिन्धु सभ्यता के लोग संसार में कपास उगाने वाले प्रथम थे, इसलिए यूनानी कपास को “सिंडोन” कहते है।
कालीबंगा के जुते हुए खेत तथा बनावली से मिटटी का हल मिला है जो कृषि कार्य की ओर इंगित करता है । सिंचाई व्यवस्था भी काफी उन्नत थी ।

पशुपालन

इस सभ्यता के लोग गाय, कूबड़ वाला सांड, गधे, बकरी, ऊंट आदि जानवरों से परिचित थे । कूबड़ वाला सांड इनका सर्वाधिक प्रिय पशु था।
संभवतः ये घोड़े से परिचित नहीं थे किन्तु …………
  1. गुजरात के सूरकोवड़ा से घोड़े के अवशेष मिले है ।
  2. लोथल से घोड़े की मूर्ति प्राप्त हुई ।
  3. अफगानिस्तान के “राणाघुन्डाई” से घोड़े के दांत के अवशेष प्राप्त हुए है ।

व्यापार तथा उद्योग

सिन्धु सभ्यता में आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार के व्यापार प्रचलित थे । विभिन्न स्थानों से कच्चे माल मंगाए जाते थे, और व्यापार जल तथा थल दोनों मार्गो से होता था ।
हड़प्पावासी अपने आवश्यकता की विभिन्न वस्तुएँ भिन्न स्थानों से प्राप्त करते थे :-
टिन : अफगानिस्तान
चांदी : अफगानिस्तान
गोल्ड : कोलार खान (कर्नाटक)
तांबा : खेतरी व गणेश्वर (राजस्थान)
फिरोजा : खुरासान (ईरान)
सेलखड़ी : बलूचिस्तान
लार्जवर्द मणि : बदख्शा (अफगानिस्तान)
इसके अतिरिक्त सिंधुघाटी के लोगो ने उद्योगों की भी स्थापना की थी, जिसमें मनके बनाना तथा वस्त्र निर्माण प्रमुख थे ।

सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन, शिल्प, मोहरें, लिपि

सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन, शिल्प, मोहरें तथा लिपि

नाप-तौल

सिन्धु सभ्यता के लोग नाप -तौल से परचित थे, इसके लिए वे “तराजू” का प्रयोग करते थे । माप के लिए प्रायः “चकमठ पत्थर” का प्रयोग करते थे । तौल प्रणाली 16 के आवर्तक रूप में व्यवहार में होता था ।

शिल्प तथा तकनिकी ज्ञान

हड़प्पा सभ्यता मुख्यतः कांस्ययुगीन सभ्यता थी,  यहाँ के निवासियों को सोना, चांदी, ताम्बा, टिन आदि धातुओं का ज्ञान था, किन्तु वे लोहे से परिचित नहीं थे 
 
मिटटी की बनी मूर्तिका एवं मुद्रा का निर्माण महत्वपूर्ण शिल्प था । यहन के लोग कुम्हार के चाक से परिचित थे , बैलगाड़ी व नाव का भी प्रयोग किया जाता था । 
 
आभुश्नो का निर्माण एवं वस्त्र उद्योग भी महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक था 
 

मोहरें

 
सिन्धु घाटी के विभिन्न स्थलों से मोहरें प्राप्त हुई है, जो इस सभ्यता के बारे में जानकारी का एक स्रोत है । मोहरें प्रायः “सेलखड़ी” (Celler or Soap Stone) की बनी होती थी, और वह चौकोर होती थी । मोहरें तथा टेराकोटा में विभिन्न ज्यामितीय आकृति, पेड़-पौधे, कूबड़ वाला सांड, हाथी, बाघ आदि का चित्रण हुआ है 
 
किन्तु गाय का चित्रण कहीं भी नहीं किया गया है 
 
सिंधुघाटी सभ्यता के निवासियों को चित्रकला का भी ज्ञान था, “लाल में काला” मृदभांड इस सभ्यता की चित्रकला की सबसे बड़ी विशेषता थी 
 

लिपि 

 
हड़प्पा लिपि का प्राचीनतम साक्ष्य 1853 में भारतीय पुरातत्व के जनक “अलेक्जेंडर कनिघंम” के सहयोग से आया । लिपि का महत्वपूर्ण स्त्रोत मोहरें हैं । किन्तु इसकी लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका । इस लिपि को न पढ़े जा सकने का प्रमुख कारण यह है की लिपि वर्णात्मक न होकर भावचित्रात्मक थी 
 
इस लिपि को लिखे जाने का क्रम पहले दायें से बाएं फिर बाएं से दायें थी । इस शैली को बेस्ट्रोफदन कहा जाता है 
 
 
 

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