प्राचीन सिक्के, मूर्तिकला, गांधार शैली, मथुरा शैली – इसके पहले हमने “पुरातात्विक स्रोत” Hadappa, Bastrofedan, Haathigunfa, Junagarh, Prayag Prashasti, Ehol, Eran Abhilekh के बारे में पढ़ा, आज हम सिक्के, मूर्तिकला, गंधार शैली , मथुरा शैली एवं मंदिर निर्माण शैली के विषय में पढेंगे ।
- सिक्को के अध्ययन को “मुद्रा शास्त्र” कहा जाता है।
- पुराने सिक्के तांबा (Copper), चांदी (Silver) तथा सोने (Gold) आदि से बने होते थे ।
- आरम्भिक सिक्कों पर केवल “चिन्ह मात्र” मिलते थे , किन्तु के बाद के सिक्कों पर “राजा, देवताओं ” के नाम व “तिथियों” का उल्लेख भी मिलता था ।
- भारत के प्राचीनतम सिक्के “आहत ” (Punch Marked) सिक्के है जो ” पांचवीं शताब्दी ” में जारी किया गया था ।
- “आहत” सिक्के चांदी के बने होते थे ।
- इन सिक्कों को “ठप्पा ” मार कर बनाया जाता था इसलिए इसे “आहत” सिक्के कहा जाता है ।
- भारत में सर्वप्रथम ” लेखयुक्त स्वर्ण के सिक्के ” – हिन्दू यूनानी द्वारा जारी किया गया ।
- सर्वाधिक सोने के सिक्के “गुप्तकाल” में जारी किया गया था जिसे “दीनार” कहा जाता है ।
- सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के “कुषाण वंश काल” में जारी किये गए थे ।
- सर्वाधिक सिक्के “मौर्योत्तर” काल में जारी किये गए ।
- “चन्द्रगुप्त II ” ने चांदी के सिक्के जारी किये थे जिसे “रूपक” कहा जाता था ।
- “सातवाहनों” ने “शीशा LED ” (Pb) के सिक्के चलायें ।
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मूर्तिकला (Murtikala)
- प्राचीन भारत में “मूर्तिकला” की स्थापना “कुषाण शासक – कनिष्क” के शासन काल से माना जाता है।
- प्राचीन काल में मूर्तिकला या मूर्ति निर्माण से दो शैलियाँ प्रचलित थी :
1. गांधार शैली ( Gandhar Shaili )
2. मथुरा शैली ( Mathura Shaili )
गांधार शैली ( Gandhar Shaili )
- यह शैली “यूनानी” “रोमन” तथा “भारतीय तत्वों” का मिश्रण है ।
- इस मूर्तिकला को “हिन्दू यूनानी” ( Indo Bactrian ) शैली कहा जाता है ।
- इस मूर्तिकला की विशेषताओं में :-
1. शारीरिक सुन्दरता
2. पारदर्शी वस्त्र
3. लहरदार बाल आदि प्रमुख है ।
- इस मूर्तिकला शैली में ” सफेद तथा चुने ” का पत्थर का प्रयोग किया जाता है ।
- “ग्रीक देवता अपोलो” (Greek God Apollo) की मूर्तियाँ इसी शैली में बनी है ।
- “महात्मा बुद्ध” की भी अधिकांश मूर्तियाँ इसी शैली में बनी है ।
मथुरा शैली ( Mathura Shaili )
- ये पूर्ण रूप से भारतीय शैली है ।
- इस मूर्तिकला की विशेषताओं में :-
1. चेहरे के चरों ओर आभामंडल
2. चेहरे पर आध्यात्मिक शान्ति
3. घुंघरालू बाल आदि प्रमुख है ।
- इस शैली में निर्मित मूर्तियों में “लाल पत्थर” का उल्लेख किया जाता है ।
- इस शैली का प्रमुख उदाहरण “कनिष्क की शीर्ष विहीन” मूर्ति ।
मंदिर निर्माण की शैली ( Mandir Nirman Shaili )
- प्राचीन काल में मंदिर निर्माण की शैली से “वस्तुकला” पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
- मंदिर निर्माण के कार्य में 3 प्रकार की शैली प्रचलित थी ।
1. नागर शैली ( Nagar Shaili ) : उत्तर भारत में अधिकांश मंदिर इसी शैली द्वारा निर्मित है ।
2. द्रविड़ शैली ( Dravid Shaili ) : दक्षिण भारत में अधिकांश मंदिर इसी शैली द्वारा निर्मित है ।
3. बेसर शैली ( Besar Shaili ) : ये शैली नागर एवं द्रविड़ शैली का मिश्रित रूप है, इसे “दक्षिणापथ” शैली भी कहा जाता है ।