Vedang, Upveda, Puran, Manu Smriti Granth and Sahitya: वेदों को समझने के लिए “वेदांगों” की रचना की गई है, और वेदांगों की संख्या 06 है ।
शिक्षा
- वैदिक स्वरों के शुद्ध उच्चारण के लिए शिक्षा शास्त्र की रचना की गई है ।
कल्प
- कल्प का अर्थ कर्मकांड एवं विधि है ।
- ये ऐसे विधिनियम है जो “सूत्र (Formula)” के रूप में लिखे गए है ।
- कल्प सूत्र के तिन भाग है :-
- स्रोत सूत्र
- गृह सूत्र
- धर्म सूत्र
स्रोत सूत्र :
- इसमें यज्ञ सम्बन्धित जानकारी मिलती है ।
- स्रोत सूत्र का एक भाग ” शुल्व सूत्र” है जिसमें यज्ञ वेदी को मापने का उल्लेख है ।
- इसी से “रेखागणित” का आरम्भ माना जाता है ।
गृह सूत्र :
- इसमें गृह कर्मकांड एवं यज्ञ का उल्लेख मिलता है ।
- इसमें लौकिक एवं परलौकिक कर्तव्यों का विवरण भी मिलता है ।
धर्म सूत्र :
- इसमें धार्मिक, सामजिक एवं राजनितिक कर्तव्यों का उल्लेख मिलता है।
व्याकरण
- इसका अर्थ भाषा को वैज्ञानिकता प्रदान करना होता है ।
- व्याकरण का प्राचीनतम ग्रन्थ “पाणिनि आष्टाध्यायी” है ।
- पतंजली ने “महाभाष्य” की रचना की है ।
- कात्यायन ने ” वर्तिक” की रचना की है ।
- पतंजली, कात्यायन एवं पाणिनि को “मुनित्रय” कहा जाता है ।
निरुक्त
- निरुक्त का अर्थ “व्युत्पत्ति शास्त्र” है ।
- शब्दों का अर्थ क्यों होता है, ये बताने वाले शास्त्र को निरुक्त कहा जाता है ।
- यह एक प्रकार का भाषा विज्ञान है ।
- निरुक्त में सबसे प्रसिद्ध या महत्वपूर्ण ग्रन्थ “यास्क द्वारा रचित निरुक्त” है, जिसे भाषा शास्त्र का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है ।
Vedang, Upveda, Puran, Manu Smriti Granth and Sahitya
छंद
- पद्यों को लयबद्ध करने के लिए “छंद” की रचना की गई है ।
- इसका प्राचीनतम ग्रन्थ “छंद शास्त्र” है जो पिंगल मुनि द्वारा रचित है ।
ज्योतिष
- ज्योतिष का विषय भविष्यवाणी है, इससे ग्रह, नक्षत्र की स्थिति तथा उनका हमारे जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताया गया है ।
- ज्योतिष का प्रथम ग्रन्थ “वेदांग ज्योतिष” है जिसके रचनाकार आचार्य लगध मुनि है ।
- पाणिनि ने 6 वेदांगों को शरीर के अलग अलग अंगों से तुलना की है :-
वेदांग शरीर के अंग
- व्याकरण मुख
- निरुक्त कान
- ज्योतिष नेत्र
- शिक्षा नाक
- कल्प हाथ
- छंद पैर
उपवेद
वेद उपवेद
- ऋग्वेद आयुर्वेद
- सामवेद गन्धर्ववेद
- यजुर्वेद धनुर्वेद
- अथर्वेद शिल्प्वेद
स्मृति ग्रन्थ
- स्मृतियां हिन्दू धर्म के “कानूनी ग्रन्थ” है ।
- इन्हें प्राचीन भारतीय समाज व राज व्यवस्था के विधि पुस्तकों की संज्ञा दी जाति है ।
- इन्हें “धर्मशास्त्र” भी कहा जाता है ।
- कुछ प्रमुख स्मृतियां इस प्रकार है :
- मनुस्मृति
- याज्ञवल्क्य
- नारद स्मृति
- पाराशर स्मृति
- बृहस्पति स्मृति
- कात्यायन स्मृति
- देवल स्मृति
मनुस्मृति
- इसकी रचना “मनु” ने की है ।
- मनु का धर्मशास्त्र हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में एक प्रमुख प्रमाणिक ग्रन्थ है ।
- मनुस्मृति की रचना “शुन्ग्काल” में हुई, संभवतः यह सबसे प्राचीन स्मृति है ।
- मनुस्मृति में स्त्रियों को “वेद पढने का ” अधिकार नहीं दिया गया है ।
- मनुस्मृति के अनुसार “स्त्रीधन” के अतिरिक्त महिलाएं संपत्ति की स्वामिनी नहीं बन सकती ।
मनुस्मृति पर निम्न विद्वानों ने टिका लिखा है :
- मेघतिथि
- गोविन्दराज
- कुल्लुक भट्ट
- भारुची
याज्ञवल्क्य स्मृति
- ये मनुस्मृति की तुलना में संक्षिप्त था ।
- ये मनु स्मृति से भिन्न था।
- मनु ने नियोग प्रथा की निंदा की जबकि याज्ञवल्क्य ने नहीं की ।
- मनु ने विधवाओं के उत्तराधिकार के विषय में कुछ नहीं कहा जबकि याज्ञवल्क्य ने विधवाओं को समस्त उत्तराधिकार में प्रथम स्थान दिया है ।
याज्ञवल्क्य के स्मृति के टीकाकार :
- विज्ञानेश्वर
- विश्वरूप
- अपराक
पुराण
- पुराण शब्द का अर्थ प्राचीन “आख्यान” है ।
- पुराणों के संकलनकर्ता “लोमहर्ष” एवं उनका पुत्र “उग्रव्रवा” है ।
- पुराणों की संख्या 18 है ।
- पुराणों का अंतिम संकलन गुप्तकाल में हुआ था ।
- पुराणों को “पंचम वेद” कहा जाता है ।
- पुराणों में विभिन्न प्राचीन राजवंशों का भी वर्णन है ।
- प्राचीन पुराण संभवतः “मत्स्य पुराण” है जिसमें शुंग वंश एवं सातवाहन वंश का वर्णन है ।
- मत्स्य पुराण में सर्वप्रथम “लिंग” पूजा का उल्लेख मिलता है ।
- विष्णु पुराण से “मौर्यों ” के बारे में जानकारी मिलती है ।
- वायु पुराण से ” गुप्तवंशो” के बारे में जानकारी मिलती है ।
- अग्नि पुराण में “गणेश पूजा” एवं तांत्रिक पद्धति की जानकारी मिलती है ।
ब्राह्मनेत्तर साहित्य
- इसके अंतर्गत मुख्यतः बौद्ध साहित्य एवं जैन साहित्य को रखा गया है ।
- सबसे प्राचीनतम बौद्ध ग्रन्थ “त्रिपटिक” है ।
- सुतपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्म पीटक बौद्ध साहित्य के ग्रन्थ है।
- जैन साहित्य को “आगम” कहा जाता है ।
लौकिक साहित्य
इसके अंतर्गत विभिन्न ऐतिहासिक रचना एवं जीवनी को सम्मिलित किया गया है , कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है :
रचना रचनाकार
- मुद्रा राक्षस विशाखदत्त
- मृच्छकटीकम शूद्रक
- अर्थशास्त्र कौटिल्य / चाणक्य / विष्णुगुप्त
- अष्टाध्यायी पाणिनि
- भधभाष्य पतंजली
- कथा सरित सागर सोमदेव
- रामचरित सुधाकर नंदी
- वृहत्कथामंजरी क्षेमेन्द्र
- पृथ्वीराजरासो चंदबरदाई
- पृथ्वीराज विजय जयनक
- राजतरंगिनी कल्हभ
- मिताक्षरा विज्ञानेश्वर
- दायभाग जीमूतवाहन
- ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वप्रथम उल्लेख अर्थशास्त्र का उल्लेख किया जाता है जिसकी रचना “चन्द्रगुप्त मौर्य” के प्रधानमंत्री “कौटिल्य या चाणक्य” ने की थी । जो की राजनीति से सम्बन्धित ग्रन्थ है ।
- ऐतिहासिक रचनाओं में एक अन्य महत्वपूर्ण रचना 12 वीं शताब्दी में लिखी गयी “कल्हभ की राजतरंगिनी” है ।
- “गार्गी संहिता” ज्योतिष पर आधारित एक ग्रन्थ है, इस पुस्तक में भारत में होने वाले “रावण आक्रमण” का भी उल्लेख है ।
- 12 वीं शताब्दी में “विज्ञानेश्वर” ने “मिताक्षरा” की रचना की थी जो की एक “विधि ग्रन्थ” है ।
- 12 वीं शताब्दी में ही “जीमूतवाहन” ने दायभाग की रचना की थी जो एक “विधि ग्रन्थ” है, जिसमें कहा गया है की – पिता के जन्मकाल में पुत्र को उसके संपत्ति का भाग नहीं मिल सकता किन्तु पिता के मृत्यु के बाद मिल सकता है।