संसद में विधायन प्रक्रिया
प्रश्न काल
विधायन प्रक्रिया – यह सदन की कार्यवाही का पहला घंटा होता है, इसमें सदस्यों के द्वारा मंत्रियों अथवा निजी सदस्यों ( गैर सरकारी ) से प्रश्न पूछे जाते है, ये प्रश्न निम्न प्रकार के हो सकते है :
तारांकित प्रश्न : इन प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाना होता है, इन पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते है ।
अतारांकित प्रश्न : इन प्रश्नों का जवाब लिखित में दिया जाना होता है, तथा इन पर पूरक प्रश्न कि सम्भावना नहीं होती ।
अल्पसूचना प्रश्न : ऐसे प्रश्नों को कम से कम 10 दिन की अल्पसूचना पर पूछा जा सकता है ।
शून्य काल
विधायन प्रक्रिया – यह प्रश्नकाल के बाद का समय होता है, जिसमें किसी ठोस महत्व के विषय पर चर्चा की जा सकती है, इस चर्चा के लिए किसी विशेष प्रस्ताव की आवश्यकता नहीं होती, संसदीय परम्परा में यह भारत की दें है जो 1962 से प्रारम्भ हुई ।
अन्य दैनिक कार्यवाहियां
A. प्रस्ताव
1.कटौती प्रस्ताव
यह प्रस्ताव तब लाया जाता है जब किसी विषय पर चर्चा पर्याप्त हो चुकी हो, अथवा समय की कमी हो तथा चर्चा समाप्त कर मतदान शुरू करना हो, इसके अंतर्गत :
साधारण कटौती : यह प्रस्ताव एक सदस्य के द्वारा लाया जाता है, जब किसी विषय पर चर्चा पर्याप्त हो चुकी हो तथा उसे मतदान के लिए रखना हो ।
घटकों में कटौती : सम्पूर्ण विषय को अनेक घटकों में बांटा जाता है तथा उनमें से एक या कुछ पर चर्चा करके उसे मतदान के लिए रख दिया जाता है ।
कंगारू कटौती : इसके अंतर्गत विषय के किसी विशेष भागों पर चर्चा की जाती है, बिच बिच के कम महत्वपूर्ण भागों को छोड़ दिया जाता है ।
गिलोटिन प्रस्ताव : इसके तहत समय की कमी के कारण किसी विषय के चर्चा किय जा चुके भाग के साथ जिसके बारे में चर्चा नहीं हुई हो, उसे भी मतदान के लिए रख दिया जाता है ।
संघ की विधायिका – विधायन – विधि
2.विशेषाधिकार प्रस्ताव – सही जानकारी प्राप्त करना सदस्यों का संसदीय विशेषाधिकार है, अतः किसी मंत्री के द्वारा गलत जानकारी देने तथ्यों के छुपाने या उनसे तोड़ मरोड़ करने पर किसी सदस्य द्वारा यह प्रस्ताव लाया जाता है ।
3.धन्यवाद प्रस्ताव – आम चुनाव के बाद पहले सत्र की शुरुआत में तथा प्रत्येक वर्ष संसद के पहले सत्र की शुरुआत में राष्ट्रपति संयुक्त बैठक को संबोधित करते है, जिसे राष्ट्रपति का अभिभाषण कहते है, इस अभिभाषण में राष्ट्रपति सरकार की नीतियाँ, विधायी कार्यों, पिछले वर्ष की उपलब्धियों तथा आगामी वर्षों के लिए योजनाओं आदि के लिए चर्चा करते है ।
इस अभिभाषण के बाद धन्यवाद मत होता है जिसे संसद में पारित होना आवश्यक है, अन्यथा इसे सरकार की पराजय माना जाता है, तथा सरकार को इस्तीफा देना होता है ।
सामान्यतः यह प्रस्ताव लोकसभा से पारित हो जाता है, परन्तु राज्यसभा में सरकार का बहुमत न होने की स्थिति में विपक्ष इसमें संशोधन का प्रस्ताव रख सकता है, जिसे सरकार को मानना होता है, ऐसा वर्तमान सरकार के कार्यकाल के पहले 3 बार हो चूका है ।
1. 1980 – इंदिरा गांधी
2. 1989 – विश्वनाथ प्रताप सिंह ( 6 संशोधन, राम मंदिर का मुद्दा भी )
3. 2001 – अटल बिहारी बाजपेयी ( बालको का निजी करण (विनिवेश)
वर्ष 2015 एवं 2016 में भी वर्तमान सरकार को यह संशोधन स्वीकार करना पड़ा है, इसका आधार क्रमशः काला धन एवं पंचायत चुनाव में निर्योग्य्ताएं ( शिक्षा एवं शौचालयों के आधार पर ) ।
यह अवधारणा ब्रिटेन के ताज के भाषण ( Speech from the Throm (गद्दी) ) से ली गयी है ।
4.निंदा प्रस्ताव – यह प्रस्ताव द्वारा किसी सदस्य द्वारा किसी मंत्री, मंत्रियों का समूह अथवा समूचे मंत्री परिषदों की आलोचना के उद्देश्य से लाया जाता है, इसमें निंदा का कारन बताना होता है इसके पारित होने पर भी सरकार को इस्तीफा नहीं देना पड़ता, परन्तु सरकार सदन में अपना विश्वास बहाल करने के लिए विश्वास मत लाती है ।
5. अतिविश्वास प्रस्ताव – यह किसी सदस्य के द्वारा लाया जा सकता है, परन्तु इस पर 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है, यह प्रस्ताव केवल लोकसभा में लाया जा सकता है, तथा इसका कोई कारण बताना अनिवार्य नहीं होता, अगर यह प्रस्ताव सामान्य बहुमत से पारित हो जाए तो सरकार अल्पमत में मानी जाती है, तथा उसे त्यागपत्र देना होता है ।
6. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव – किसी भी सदस्य के द्वारा किसी लोक महत्व के विषय पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करने एवं उसका जवाब लेने के लिए यह प्रस्ताव लाया जाता है ।
7. स्थगन प्रस्ताव – यह प्रस्ताव न्यूनतम 50 सदस्यों के समर्थन से किसी भी सदन में लाया जा सकता है इसका उद्देश्य किसी लोक महत्व के विषय पर सदन का ध्यान आकर्षित करना, तथा तुरंत चर्चा चर्चा के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित करना होता है, तो इसके तहत किसी एक विषय को जिस पर न्यूनतम 2.5 घंटे की चर्चा संभव हो उसी सत्र में वह न उठाया गया हो, विशेषाधिकार प्रश्न से सम्बन्धित न हो तथा उससे सम्बन्धित मामला देश के किसी अदालत से लंबित न हो उठाया जा सकता है ।
8. अनियत दिवस प्रस्ताव – यह ऐसा प्रस्ताव होता है जिसे पीठासीन अधिकारी द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, परन्तु उसके लिए कोई तिथि निर्धारित नहीं की गई है ।
9. औचित्य प्रश्न – यह प्रश्न किसी भी सदस्य के द्वारा तब उठाया जा सकता है, जब संसद की कार्यवाही नियमों के अनुरूप नहीं चल रही हो, परन्तु इसके लिए संविधान या संसद के विधि या नियम का सहारा लेना आवश्यक है, इस स्थिति में सदन की कार्यवाही स्थगित हो जाती है । यह किसी विपक्षी सदस्य के द्वारा सरकार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से लाया जाता है ।
10. आधे घंटे की चर्चा – लोक महत्व के किसी विषय पर आधे घंटे का वक्त दे सकता है यह सप्ताह में केवल 3 दिन हो सकता है ।
नोट : 2 घंटे की चर्चा या अल्पकालीन चर्चा – लोक महत्व के विषय पर पीठासीन अधिकारी द्वारा 2 घंटे की चर्चा का समय दिया जा सकता है ऐसा सप्ताह में केवल 2 दिन किया जा सकता है ।
(B) संकल्प
संकल्प अपने आप में महत्वपूर्ण प्रस्ताव होते है, जिन पर मतदान आवश्यक होता है, यह 3 प्रकार के होते है :
1. शासकीय संकल्प – इसे मंत्री के द्वारा लाया जाता है, तथा इसे सोमवार से गुरूवार के मध्य किसी भी समय लाया जा सकता है ।
2. गैर शासकीय संकल्प – यह केवल Alternate शुक्रवार को लाया जा सकता है, इसके पारित होने की संभवना कम होती है ।
3. सांविधिक संकल्प – ये ऐसे संकल्प है जिसके अंतर्गत संविधान या विशी में शामिल कोई विषय नहीं उठाये जाते है ।
विशेष उल्लेख : – ऐसा कोई विषय जो अन्य किसी संसदीय माध्यम से ( प्रश्नकाल, शून्यकाल …….आदि ) नहीं उठाये जा सकते, राज्य सभा में विशेष उल्लेख के तहत उठाये जा सकते है । समान कार्यवाही को लोकसभा में नोटिस कहा जाता है ।