हिन्दू महासभा
वर्ष – 1915
संस्थापक – मदन मोहन मालवी
स्थान – हरिद्वार
उद्देश्य – आरम्भिक दिनों में शुद्धी संगठन इसके मुख्य उद्देश्य थे। हिन्दुओ को आत्मरक्षा के लिए संगठित करना भी इसका मुख्य उद्देश्य था ।
विशेष – भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की मुसलमानों को प्रसन्न करने की निति से दुखी होकर सावरकर ( बिनायक दामोदर सावरकर ) ने “हिन्दू राष्ट्र” का नारा दिया । 1938 में सावरकर इसके प्रमुख बने। ( CGPSC Exam Imp )
लखनऊ समझौता – 1916
1914 में तिलक जेल से रिहा हुए और 1915 में नरम पंथी नेता गोपाल कृष्ण गोखले व फिरोजशाह मेहता का निधन हो गया था। ऐसी स्थितियों में ऐनी बेसेंट के प्रयासों से गरम पंथियों का कांग्रेस में पुनः वापसी हुई । (CGPSC Imp)
अध्यक्ष – कांग्रेस के 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अम्बिका चरण मजुमदार ने की थी। 1916 में लीग का अधिवेशन भी लखनऊ में हुआ था। दिसम्बर 1916 में तिलक तथा जिन्ना के प्रयासों से कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के मध्य भी एक समझौता हुआ।
समझौता की मुख्य बातें
- कांग्रेस ने मुस्लिमों के पृथक निर्वाचन प्रणाली को स्वीकारा, विभिन्न प्रान्तों में मुसलमानों के लिए उनके जनसंख्याँ के अनुपात में या उससे अधिक संख्यां में विधायिका में आरक्षण को स्वीकार गया।
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका में भी 1/3 भाग पर मुस्लिम प्रतिनिधियों के आरक्षण को स्वीकारा गया।
लखनऊ समझौता व हिन्दू महासभा
समझौता का महत्व – ये समझौता हिन्दू तथा मुस्लिम एकता के संदर्भ में किया गया महत्वपूर्ण प्रयास था।
आलोचना
- समझौते का आधार धर्म निरपेक्ष नहीं था ।
- साम्प्रदायिक निर्वाचन को स्वीकार करना सबसे बड़ी भूल थी ।
- मुस्लिमों को उनके जनसंख्याँ के अनुपात से अधिक आरक्षण तुष्टिकरण की एक निति थी।
- कांग्रेस ने लीग से समझौता करके लीग के इस दावे की पुष्टि को समर्थन किया की लीग मुसलामानों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक मात्र संगठन है ।
निष्कर्ष – इस समझौते ने अनजाने में ही देश में विभाजन की रेखा की भूमि तैयार कर दी थी ।
अन्य
कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में राजकुमार शुक्ल की मुलाक़ात गांधी जी से हुई थी ।
इस सम्मलेन में महात्मा गांधी पहली बार चंपारण के किसानों के समस्या से अवगत हुए ।
भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस व मुस्लिम लीग के मध्य मतभ्य का काल 1916 से 1922 तक था ।