केवलअधिकार प्राप्त हो जाने या मिल जाने से समस्या समाप्त या उसका कोई हल प्राप्त नहीं होता,, जब तक कि उसे लागू न किया जाये। इसलिए संविधान में अनुच्छेद 32 से 35 तक संवैधानिक उपचारों के अधिकारों की व्यवस्था की गयी है।
अनुच्छेद 32 – प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
इसके तहत मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय की शरण में जा सकता है, अतः उच्चतम न्यायालय को मौलिक अधिकारों का संरक्षक एवं गारंटर बनाया गया है ।
मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में उच्चतम न्यायालय 05 प्रकार की रिट जारी कर सकता है, जो की निम्न प्रकार से है :
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) – सशरीर उपस्थित करों
- परमादेश (Mandamus) – हम आदेश देते है
- उत्प्रेषण (Certiorari) – पूर्णतः सूचित करों
- प्रतिषेध (Prohibition) – रोकों – अधिस्थनस्थ
- अधिकार- पृच्छा (QuaWarranto) – किस अधिकार से ( सार्वजनिक अधिकारी )
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट– इसके अंतर्गत गिरफ्तारी का आदेश जारी करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी को न्यायाधीश के सामने सशरीर उपस्थिति करें।
- परमादेश (Mandamus) रिट– इसके द्वारा न्यायालय अधिकारी को आदेश देती है कि वह उस कार्य को करें जो उसके क्षेत्र अधिकार के अंतर्गत है।
- प्रतिषेध (Prohibition) रिट– प्रतिषेध रिट का मुख्य उद्देश्य किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपनी अधिकारिता का अतिक्रमण करने से रोकना है तथा विधायिका, कार्यपालिका या किसी निजी व्यक्ति या निजी संस्था के खिलाफ इसका प्रयोग नहीं होता।
- उत्प्रेषण (Certiorari) रिट– यह रिट किसी वरिष्ठ न्यायालय द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायिक निकाय जो अपनी अधिकारिता का उल्लंघन कर रहा है, को रोकने के उद्देश्य से जारी की जाती है।
- अधिकार पृच्छा (Qua Warranto) रिट– यह इस कड़ी में अंतिम रिट है जिसका अर्थ ‘आप क्या अधिकार है?’ होता है यह अवैधानिक रूप से किसी सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है।
मौलिक अधिकारों पर हनन पर रिट जाने का अधिकार अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को भी है परन्तु उच्च न्यायालय इस मामलें में रिट जारी करने से मन कर सकता है किन्तु सर्वोच्च न्यायालय ऐसा नहीं कर सकता।
रिट जारी करने की शक्ति के मामलें में उच्च न्यायालय के अधिकार अधिक विस्तृत है क्योंकि ये मौलिक अधिकारों के अतिरिक्त एनी कई मामलों में रिट जारी कर सकता है ।
संसद को अधिकार है की वह किसी भी न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार सौंप दे। बाबा साहब आम्बेडकर के शब्दों में संवैधानिक उपचारों का अधिकार संविधान की “हृदय एवं आत्मा” है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार – अनुच्छेद 32-35
अनुच्छेद 33 – अधिकारों का, बलों आदि पर परिवर्तन करने की संसद की शक्ति
मौलिक अधिकार सभी के लिए सामान्य रूप से लागू नहीं होते, सेना , पुलिस इत्यादि के लिए इनके अधिकार सीमित है।
अनुच्छेद 34 – जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग में अधिकारों पर निर्बन्धन
सैनिक शासन के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन किया जा सकता है। संसद विधि द्वारा संघ या राज्य की सेवा में किसी व्यक्ति की या किसी अन्य व्यक्ति की किसी ऐसे कार्य के संबंध में क्षतिपूर्ति कर सकेगी जो उसने भारत के राज्य क्षेत्र में, जहां सेना विधि प्रवृत्त थी।
अनुच्छेद 35 – उपबंधों को प्रभावी बनाने के लिए विधान
संसद को यह शक्ति होगी कि वह जिन विषयों के लिए अनुच्छेद 16(3), 32(3), 33 और 34 के अधीन संसद विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी। साथ ही, उसे ऐसे कार्यों के लिए, जो इस भाग के अधीन अपराध घोषित किये गये हैं, दंड विहित करने के लिए विधि बनाने का अधिकार होगा। ये अधिकार राज्य के विधान मंडलों के नहीं होंगे।
आलोचनाएँ
1. प्रतिबन्ध अधिक
2. अस्पष्ट भाषा
3. सामजिक आर्थिक अधिकार नहीं