ऋग्वैदिक काल में धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषता प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण कर उसकी उपासना करना था ।
प्रकृति के प्रतिनिधि के रूप में आर्यों के देवताओं की तीन श्रेणियां थी :-
आकाश के देवता – सूर्य या सवीतृ / सविता (चमकता हुआ सूर्य) ऊषा, विष्णु, वरुण , मित्र
अन्तरिक्ष के देवता – इन्द्र, वायु या मरुत
पृथ्वी के देवता – पृथ्वी, अग्नि, बृहस्पति, और सोम
इन्द्र
ऋग्वेद में सबसे प्रमुख देवता “इन्द्र” थे, ऋग्वेद में इन्द्र का उल्लेख 250 बार हुआ है ।
इन्द्र को युद्ध का देवता या पुरंदर अर्थात किलों को तोड़ने वाला कहा गया है ।
अग्नि
अग्नि का स्थान इन्द्र के बाद था अर्थात दूसरा महत्वपूर्ण देवता । ऋग्वेद में अग्नि का उल्लेख 200 बार हुआ है ।
ऋग्वेद में अग्नि, देवता तथा मनुष्य के बीच मध्यस्थ था, क्यूंकि इनके माध्यम से देवताओं को आहुति दी जाती थी ।
वरुण
ऋग्वैदिक काल में वरुण का स्थान तीसरा था ।
वरुण को ऋतस्यगोपा कहा गया अर्थात नैतिक मूल्यों का रक्षक ।
वैदिक (ऋग्वेद) काल – धार्मिक जीवन
सोम
सोम को वनस्पति का देवता माना गया, ऋग्वेद का 9 वां मण्डल सोम को समर्पित किया गया है ।
सवीतृ / सविता
जब सूर्य चमकता है तब उसे सवीतृ / सविता कहा जाता है । ऋग्वेद का प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र सवीतृ देव को समर्पित है जिसका उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में है ।
मरुत
तूफानों का देवता